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neel ki kheti

सीधा, सरल जो मन मेरे घटा
सीधा, सरल जो मन मेरे घटा
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किसी एक खास छेत्र के विकास के लिए
छूट दे दीं जाती हैं पर उद्योगपति इन छूट की अवधी समाप्त होते ही अपना डेरा उठा कर चल देते किसी और जगह जहाँ इन्हे नए सिरे से रियायतें मिल सकें. जिस तरह नील की खेती के बाद सिर्फ नील की खेती ही हो सकती हैं उसी तरह उस जगह अब सिर्फ उद्योग ही लग सकते हैं अब उन जगहों पर बासमती चावल नहीं उग सकता, बिलकुल नील की खेती की तरह. तो क्या इस तरह से उपजाऊ जमीं को उजाड़ कर उद्योग उखारने वाले उद्योगपतियों पर प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए की कम से कम छूट अवधी समाप्त होने के दस या बीस साल बाद तक उस स्थान पर उद्योग स्थापित रखना अनिवार्य हो. क्या ऐसे उद्योगपतियों पर यह प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए की किसी नयी जगह पर कम से कम बीस साल तक इस दशा में उन्हें नयी फैक्ट्री की अनुमति नहीं हो. क्या नील की खेती की निति पर पुनर्विचार नहीं होना चाहिए? आप शोचिये और हो सके तो कुछ करिए.
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