एक बहुत बड़ी उधेड़बुन में फंसा हुआ हूँ कि महंगाई और दीवाली की दोस्ती है या दोनों में कोई रार है. दोनों एक दूसरे के महबूब हैं या जानी दुश्मन. आप गौर करें दीवाली तभी आती है जब महंगाई चरम पर होती है या फिर दीवाली का साथ देने महंगाई चली आती है. भाई मेरे ख्याल से इतना सटीक संयोग तो दो दोस्तों या दो दुश्मनों की युति से ही संभव है. अन्यथा ऐसा दूसरे किसी त्यौहार के साथ क्यों नहीं होता. हमने तो बड़े-बुजुर्गों को कहते सुना है कि दीवाली में दीवाला निकल जाता है. मतलब यह हुआ कि दीवाली और दीवाला यानी महंगाई डायन का चोली दामन का अत्यंत पुराना साथ है. मानने वाले मानते हैं कि सारे टोने टोटके दीवाली पर शबाब पर होते हैं. टोने टोटके तो डायन भी करती है यानी कि जिसने भी पहली बार महंगाई को डायन कहा उसके तर्क-दक्ष दिमाग की दाद देनी होगी. महंगाई डायन खाए जात है सारी कमाई और ऐसे में कमबख्त दीवाली चली आई. त्यौहार है मनाना तो है ही. चाहे अपने मन की प्रसन्नता के लिए, परिवार की खुशियों के लिए या चाहे लोक-लाज के भय से, त्यौहार है तो मनाना तो है ही. भाई हमें याद है, थोड़ी सी मिठाई, सादे से कपडे, मिले या ना मिले प्रसन्नता पूरी मिलती थी मेरे इस पसंदीदा त्यौहार पर. मिठाई की चाशनी में लिपटे स्वार्थ और कपट से निरापद एकदम खालिश शुद्ध अपनापन, प्यार और आशीर्वाद. कहां मिलता है अब ये सब. ये सब अब इतना महंगा हो चुका है जितना कभी सेब या अंगूर हुआ करते थे. अब जेबें पैसों से भरी हैं फिर भी हमारे हाथ खाली हैं. महंगाई डायन यहाँ भी मुंह मार गई. प्रेम-व्यवहार तो शाहतूश या पश्मीना से भी महंगा हो गया है भाई. आपको नहीं लगता कि जैसे बाघों के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट चल रहें हैं, वैसे ही भाई-चारा संरक्षण प्रोजेक्ट भी चलना चाहिए. बाबा रामदेव जी कहते हैं की बड़े नोट बंद हो जाने चाहिए. जब से जेबकतरों ने सुना है उन्होंने तो सवा सौ रूपये का प्रसाद भी बोल दिया है. इतने नोट एक जेब में तो समाने से रहे सो ये अंदाजा लगाने की कोई आवश्यकता नहीं कि नोट किसमे और खाली कौन सी. जिसमें भी हाथ डालो माल तो हाथ लगना ही है, हाँ मात्रा भी कम हो जायेगी पर उसकी भरपाई आवृत्ति बढ़ने से हो जायेगी क्योंकि कोई हाथ अब खाली जेब में जाने वाला तो है नहीं. घूश पाने वाले भी खुश, कि चलो अब कोई अपने नकली ५०० या १००० के नोट उन्हें थमाकर चूना तो नहीं लगा पायेगा. चलो बाबा तुम्हारे इतने वोट तो पक्के. आप सोच रहे होंगे ये बाबा कहाँ से आ गए, दीवाली और महंगाई डायन के बीच में. दरअसल, बाबा ने पटाका फोड़ा है तो दीवाली पे उसका जिक्र तो होना ही चाहिए. डायन के दायें पंजे सी छूमंतर करती दिखती है रुपया, पैसा, गिन्नी, चांदी को दीवाली चुभती दिखती है. जेबें खुली कपूर की डिविया खाली हवा महल जैसी हैं. ग्राफ बढ़ा वेतन का लेकिन मायूसी पहले जैसी है.
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