पिछले दिनों कश्मीर में जो हुआ वो सचमुच अँधेरे में एक उम्मीद की किरण की तरह प्रस्फुटित हुआ है. अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा का बहिष्कार करते हुए कश्मीर के अलगाववादियों ने बंद का आह्वान किया था, इस उम्मीद के साथ कि जमकर हंगामा होगा और पूरी दुनिया में कश्मीर को लेकर गलत सन्देश जाएगा और कश्मीर समस्या को अंतर्राष्ट्रीय फुटेज मिलेगा. परन्तु कश्मीर में अलगाववादियों की सोच के ठीक विपरीत घाटी में कोई भी हुर्रियत के कर्फ्यू के आह्वान पर अमल करता नजर नहीं आया बल्कि बंद के विरोधस्वरूप शांति मार्च का आयोजन भी किया गया. जनता ने कर्फ्यू को पूरी तरह नकार दिया. इससे प्रोत्साहित होकर सरकार ने भे चप्पे चप्पे पर सुरक्षा बालों को तैनात कर रखा था. झल्लाकर अलगाववादियों ने जगह जगह पथराववाजी और हिंसा का सहारा लिया. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि लगातार हिंसा और अविकास से त्रस्त जनता उकता चुकी है और अब अमन और शांति चाहती है. अमन ने हिंसा के खिलाफ मोर्चा खोलकर बगावत का एलान कर दिया है. अमन विद्रोह का झंडा उठाकर वादी में फैली अशांति को उखाड़ फेंकने का निश्चय कर चुका है. अतेव कश्मीरियों को सरकार से इस वक़्त पूरा सहयोग मिलना चाहिए. हो सकता है पंजाब की तरह कश्मीर में भी आतंकवादी घटनाएँ इतिहास बन जाएँ. जो भी हो, अँधेरे में उम्मीद की किरण तो फूटती अवस्य दिखाई पद रही है.
अंधेरी गुफाओं में रोशनी की एक लकीर तो दिखी. अमन करता है बगावत भी उसकी ऐसी तासीर तो दिखी. उखड सकते हैं पांव अंगद के भी ऐसी कोई चलो नजीर तो दिखी. घाव नासूर बन जाते हैं पुराने फर्क करतें हैं अपने बेगाने देर से ही सही आँखों में किसीके एक सच्चे ख्वाब की तस्वीर तो दिखी.
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